वो लड़का, जो सवालों की दुनिया मे ही खोया रहता है और ढूंढता है उस एक-एक सवाल को, उसकी किताबों के उन पन्नो में जो उसने कई बार पलटे है, वो चंद सवाल जो उसके एग्जाम में आएंगे और उसे रैंक दिलाएंगे। वो लड़का शायद अब गुम चुका है
वो लड़का जो अपना पूरा वक़्त लाइब्रेरी या क्लास में बीता देता है लेकिन वो सोचता है एक दिन में भी सूरज देखूंगा, एक दिन में भी सूरज देखूंगा।
वो लड़का जो अब सिर्फ उसके रूम से उसकी मेस के रास्ते पर ही आया जाया करता हैं, भूल चुका है उन सभो रास्तो को जहाँ वो कभी उसके दोस्तों के साथ आया जाया करता था।
वो लड़का कभी कभी उसकी मेस के रास्ते पर कुछ लडको को मस्ती करते हुए या घूमते हुए देखता है तो याद करता है वो सारे पल जो उसने उसके दोस्तों के साथ कॉलेज में बिताये थे लेकिन आज वो सभी पल उसके गूगल ड्राइव के किसी फोल्डर में महज एक मेमोरी बन कर रह गये है।
वो लड़का जिसे बार बार सिर्फ यही ख्याल आता है कि जब वो घर से बाहर निकला था तो उसके पिताजी की भी आंखे नम थी जिनको अक्सर उसने गुस्से में ही देखा था। वहीँ दूसरी ओर उसकी माँ की आंखे भी उसे याद है जो नम होने के साथ साथ इस उम्मीद में भी थी कि मेरा बेटा जल्दी से नौकरी करके पैसे कमायेगा ओर ठीक करवाएगा घर का वो फर्श, जिसका सीमेंट टूटे हुए कई साल हो गए है, जिसके बारे में वो हमेशा शिकायत करता रहता है। शायद वो लड़का भी उस सीमेंट की तरह टूट चुका है।
वो लड़का जो आये दिन उसके दोस्तों , रिश्तेदारों के WhatsApp Status देखता है और झल्ला उठता है और अपने मोबाइल का लॉक खोलकर गेलेरी ओपन करता है, ये सोचकर की उसका कोई फोटो वो भी upload करेगा लेकिन उसे कोई फोटो नहीं मिलता है, हां मिलती है कुछ सेल्फी जो उसने कुछ समय पहले ली थी पर वो रुक जाता है ये सोचकर की वो इतना अकेला हो गया है कि उसकी जिन्दगी में कोई उसका फोटो लेने वाला भी नहीं रहा।
वो लड़का जिसे उसके देश की सरकार से नफरत है लेकिन वो उसके देश की सरकार के लिए ही काम करना चाहता है ये सोचकर की शायद वो कुछ बदलाव ला पाए लेकिन उसे पता है एक दिन वो भी उसी सिस्टम का हिस्सा हो जायेगा जिसे वो बदलना चाहता है ।
वो लड़का जिसने ठीक 1 साल पहले भी यही एग्जाम दिया था उसी के एक दोस्त के साथ। उसका चयन नहीं हो पाया लेकिन उससे थोड़े कम मार्क्स लाने पर भी उसके दोस्त को नौकरी मिल गयी । उसे याद आता है की बचपन में उसके शिक्षक ने उसे सिखाया था की सबको समानता है और सभी को समानता का अधिकार है लेकिन जेसे ही उसे ये याद आता है वो गुस्से से भर जाता है और सोचता है कहाँ है वो समानता और कहाँ है वो समानता का अधिकार ? वो ये सब बदलना चाहता है लेकिन केसे ? किसके पास जाए वो ? किस व्यक्ति से आस करे ? किसको बताये की उसके साथ गलत हुआ है ? उसके माँ- बाप, जो बेचारे उसी से सारी आस लगाये बेठे है या उसके शिक्षक जिन्होंने उसे समानता का अधिकार बताया था । सरकार के पास जाए , वो सरकार जिसने खुदने उसके देश को जाती-पाती , भेदभाव , ऊँच-नीच, हिन्दू-मुस्लिम, अमीर-गरीब के आधार पर बाँट रखा है।आखिर किसके पास जाए वो ? किसे बताये की ये सब सही नहीं है।
ये सब सोचता हुए वो लड़का फिर चल पड़ता है पैदल-पैदल उसके रूम की तरफ जहाँ उसकी कुर्सी-टेबल उसका इंतज़ार कर रही है
वो लड़का शायद में.... या शायद में नहीं ।
लेकिन हां शायद वो आप है या शायद आप या शायद आप.....
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