Monday, October 30, 2017

वो लड़का


वो लड़का, जो सवालों की दुनिया मे ही खोया रहता है और ढूंढता है उस एक-एक सवाल को, उसकी किताबों के उन पन्नो में जो उसने कई बार पलटे है, वो चंद सवाल जो उसके एग्जाम में आएंगे और उसे रैंक दिलाएंगे। वो लड़का शायद अब गुम चुका है

वो लड़का जो अपना पूरा वक़्त लाइब्रेरी या क्लास में बीता देता है लेकिन वो सोचता है एक दिन में भी सूरज देखूंगा, एक दिन में भी सूरज देखूंगा।

वो लड़का जो अब सिर्फ उसके रूम से उसकी मेस के रास्ते पर ही आया जाया करता हैं, भूल चुका है उन सभो रास्तो को जहाँ वो कभी उसके दोस्तों के साथ आया जाया करता था।

वो लड़का कभी कभी उसकी मेस के रास्ते पर कुछ लडको को मस्ती करते हुए या घूमते हुए देखता है तो याद करता है वो सारे पल जो उसने उसके दोस्तों के साथ कॉलेज में बिताये थे लेकिन आज वो सभी पल उसके गूगल ड्राइव के किसी फोल्डर में महज एक मेमोरी बन कर रह गये है।

वो लड़का जिसे बार बार सिर्फ यही ख्याल आता है कि जब वो घर से बाहर निकला था तो उसके पिताजी की भी आंखे नम थी जिनको अक्सर उसने गुस्से में ही देखा था। वहीँ दूसरी ओर उसकी माँ की आंखे भी उसे याद है जो नम होने के साथ साथ इस उम्मीद में भी थी कि मेरा बेटा जल्दी से नौकरी करके पैसे कमायेगा ओर ठीक करवाएगा घर का वो फर्श, जिसका सीमेंट टूटे हुए कई साल हो गए है, जिसके बारे में वो हमेशा शिकायत करता रहता है। शायद वो लड़का भी उस सीमेंट की तरह टूट चुका है। 

वो लड़का जो आये दिन उसके दोस्तों , रिश्तेदारों के  WhatsApp Status देखता है और झल्ला उठता है और अपने मोबाइल का लॉक खोलकर गेलेरी ओपन करता है, ये सोचकर की उसका कोई फोटो वो भी upload करेगा लेकिन उसे कोई फोटो नहीं मिलता है, हां मिलती है कुछ सेल्फी जो उसने कुछ समय पहले ली थी पर वो रुक जाता है ये सोचकर की वो इतना अकेला हो गया है कि उसकी जिन्दगी में कोई उसका फोटो लेने वाला भी नहीं रहा।

वो लड़का जिसे उसके देश की सरकार से नफरत है लेकिन वो उसके देश की सरकार के लिए ही काम करना चाहता है ये सोचकर की शायद वो कुछ बदलाव ला पाए लेकिन उसे पता है एक दिन वो भी उसी सिस्टम का हिस्सा हो जायेगा जिसे वो बदलना चाहता है ।

वो लड़का जिसने ठीक 1 साल पहले भी यही एग्जाम दिया था उसी के एक दोस्त के साथ। उसका चयन नहीं हो पाया लेकिन उससे थोड़े कम मार्क्स लाने पर भी उसके दोस्त को नौकरी मिल गयी । उसे याद आता है की बचपन में उसके शिक्षक ने उसे सिखाया था की सबको समानता है और सभी को समानता का अधिकार है लेकिन जेसे ही उसे ये याद आता है वो गुस्से से भर जाता है और सोचता है कहाँ है वो समानता और कहाँ है वो समानता का अधिकार ? वो ये सब बदलना चाहता है लेकिन केसे ? किसके पास जाए वो ? किस व्यक्ति से आस  करे ? किसको बताये की उसके साथ गलत हुआ है ? उसके माँ- बाप, जो बेचारे उसी से सारी आस लगाये बेठे है या उसके शिक्षक जिन्होंने उसे समानता का अधिकार बताया था । सरकार के पास जाए , वो सरकार जिसने खुदने उसके देश को जाती-पाती , भेदभाव , ऊँच-नीच, हिन्दू-मुस्लिम, अमीर-गरीब के आधार पर बाँट रखा है।आखिर किसके पास जाए वो ? किसे बताये की ये सब सही नहीं है।     

ये सब सोचता हुए वो लड़का फिर चल पड़ता है पैदल-पैदल उसके रूम की तरफ जहाँ उसकी कुर्सी-टेबल उसका इंतज़ार कर रही है 

वो लड़का शायद में.... या शायद में नहीं ।
लेकिन हां शायद वो आप है या  शायद आप या  शायद आप.....  

Wednesday, October 25, 2017

दौड़


दौड़ ये कैसी है,
ले आती है बार बार एक अनजाने मुकाम पे,
कल भी थी, आज भी है और शायद कल भी रहेगी ये दौड़ जो है, यहीं है।

दौड़ ये तेरी भी है और दौड़ ये मेरी भी है।
तेरी जो दौड़ मुझसे, मुझे हराने की है मेरी वही दौड़ तुझसे जीतने की है, पर क्या फर्क पड़ता है। है तो दौड़ ही चाहे किसी की भी हो।

कल भी तो थी ये दौड़ हां पर कल ये दौड़ मार्क्स की थी, आज ये नौकरी की है और कल ये छोकरी की होगी ओर परसों किसी ओर चीज की।

लेकिन इस दौड़ में दौड़ते दौड़ते कही ना कही हम उसे भूल गए जिसके लिए ये दौड़ हमने दौड़ना शुरू की थी।कोन था वो, क्या नाम था उसका, था एक बहुत छोटा सा, नाम था उसका "बचपन"। बड़ा मस्त था यार बचपन । ना तो किसी से जीतना जानता था और ना किसी से हारना, जानता था तो सिर्फ खेलना ओर वो भी बिना थके बिना रुके। पर अब वो मेरे घर की गली के किसी कोने में दुबका हुआ सा, सहमा हुआ सा कहीं गुम सा गया है।

जब मैं उससे दूर आया था तो कहकर आया था कि वापस आ जाऊँगा जल्दी बस थोड़े दिन की ही तो बात है। आज 10 साल हो गए लगता है जैसे कल की ही बात है लेकिन अब मैं बहुत दूर आ गया उससे, अब उसके पास जाने में डर लगता है। डर लगता है कही खो न दु उन सब चीजों को जो मेने इन 10 सालो में पाई है। कही खो न दूँ उन सबको जो मेरी तरह ही इसी डर से डरे हुए है।

"बचपन" मुझसे जब भी मिलता है सिर्फ यही कहता है की आ जाओ वापस बहुत हो गया, थोड़ा रूक जाओ, थोड़ा आराम कर लो, थोड़ा टहर जाओ। लेकिन मे उससे हमेशा से यही कहते आया हूं की बस ये चीज ओर कर लूँ फिर आऊंगा उसके बाद सिर्फ तेरे पास रहूंगा। बस थोड़ी बड़ी ओहदे वाली नॉकरी मिल जाये, एक सुंदर सी लड़की से शादी हो जाए और फेसबुक पर एक अच्छा सा स्टेटस डाल दु ताकि मेरे लाइक्स ओर मेरे फॉलोवर्स बढ़ जाये बस फिर आता हूं तेरे पास।  थोड़े पैसे और कमा लू, थोड़ा और जोड़ लू , एक गाड़ी ओर खरीद लू बस फिर आता हूं।

आज सुबह फिर मिला था , पूछ रहा था कब आओगे वापस? में कह आया, आ रहा हूं बस थोड़े दिन और,
यही कह आया हु उस बचपन से अभी अभी। आज भी वो हमेशा की तरह चुप गया वापस उसी गली की उसी कोने में कही दुबक कर, सहम कर।
" मेरा बचपन "

अब में चलता हूं। मुझे अभी दौड़ना है अभी थोडा बचा हुआ है । 

Sunday, October 1, 2017

8*8 का एक कमरा

मेरे घर मे एक कमरा है जो अक्सर बन्द रहता है। यही होगा कोई 8*8 का बस।

आज इतने समय बाद जब घर आया तो देखा यहाँ दिवाली की सफाई चल रही है और मम्मी ने मेरे आते ही मुझे भी काम थमा दिया। अब हर साल की तरह इस साल भी मुझे पंखे पोछने और तस्वीरों को कपड़े से साफ करने का काम मिला था लेकिन में ये  करके बोर हो चुका था तो मुझे कुछ नया करना था तो मैने उस कमरे की सफाई का काम अपने जिम्मे ले लिया। में आप सभी को बता दूँ की ये कमरा हमारे घर मे सिर्फ उन चीजों के लिए है जो अब पुरानी हो गयी है और आगे कुछ काम नही आएंगी। कुछ लोग इन सब चीजों को फेंक देते है लेकिन मेरे माँ पिताजी शायद पुरानी चीज़ो का मूल्य जानते है शायद इसलिए ये उन्हें नही फेंकते। ऐसा भी नहीं कि सब चीजें ही हम संभाल कर रख लेते है बल्कि ऐसा है कि कुछ चीजें जो माँ पिताजी को लगता है कि ये जुड़ी हुई है किसी न किसी से घर में, वो सब, हम यह रख लेते है। परन्तु मुझे इस कमरे में आये एक अरसा सा बीत गया है और यहाँ तक कि मुझे तो पता भी नही चलता कभी कभी की ये कमरा भी हमारे घर मे हैं। आप सभी के साथ भी होता होगा जैसे कोई चीज हमारे काम की नही तो हम भूल जाते है वो है और फिर एक अरसे बाद कभी भूले भटके कभी उस चीज़ से रूबरू होने का मौका मिलता है तब अतीत के पन्नो से पुरानी यादें निकल कर आ जाती है मन के मानस पटल पर और बिखेर देती है उन सभी लम्हों को आंखों के सामने जैसे कल की ही बात हो।
जैसे ही मेने इस कमरे का दरवाजा खोला तो मेरे मन के मानस पटल पर वो सारी तस्वीरे उभर आई जो कभी बचपन मे कुछ पलो में बनी थी।

एक तरफ वो रोबोट रखा हुआ था मेले में से मुझे 2 साल तक जिद करने के बाद 12 साल की उम्र में बाद मिला था। आज इसके एक हाथ और एक पैर नही है और सिर का भी एक हिस्सा गायब है लेकिन आज इसे हाथ मे लिया तो ऐसा लगा कि में भी कभी बच्चा था जो खेलना जानता था | वही बच्चा जो ऐसे रोबोट से खेलकर अपने आप को एस्ट्रोनॉट समझ लेता है और खुश रहता है। आज सोचता हूं कि ऐसे ना जाने कितने गैजेट मेरे पास है लेकिन वो ख़ुशी अब मन मे नही है। इस ओर ओर ओर की लालसा ने मुझे असली मजे से दूर कर दिया है और ला दिया है उस मोड़ पर जहा में बस थोड़ा और चाहता हूं लेकिन में सच मे नही जानता कि ये थोड़ा और कब खत्म होगा।

वहाँ दूसरी तरफ एक कार रखी थी जो मुझे मेरे 10th जन्मदिन पर मिली थी । मेरे पापा ने दी थी मुझे ये कार। इस कार की खास बात ये है कि आज इतने साल बाद भी ये कार चलती है लेकिन अब इसका रिमोट गुम हो गया है और मुझे इसे खुदके हाथो से ही चलाना पड़ता है। है शायद दुनिया का यही उसूल है जो पुराना हो जाता है उसे किसी के सहारे की जरूरत पड़ती है। सहारा कैसा भी क्यों न हो लेकिन जरूरत तो पड़ ही जाती है , चीजे पुरानी हो इसका मतलब ये तो नहीं की उन्हें फेंक दिया जाए या छोड़ दिया जाए उनके खुदके भरोसे ही। में कैसे छोड़ दू उस कार को जो आज मेरे सहारे नही चल पा रही लेकिन कभी इसी कार के सहारे में पूरी छत पर दौड़ लगाता था ओर जीत जाता था वो सारी रेस जो जो मेने खुदने ही बनाई थी। आज मेरे पास बाइक है लेकिन सच बताऊ तो में कोई रेस जीत ही नही पा रहा क्योंकि हर बार जीतने के बाद मेरी मंजिल बदल जाती है।

एक कोने में क्रिकेट का वो बैट रखा हुआ था जो मेरे पिताजी 2003 के वर्ल्डकप में लाये थे। मेरी तरह ही मेरे पिताजी भी क्रिकेट के दिवाने हैं शायद इसलिए उस समय ये बैट मुझे मिला था और 2003 के वर्ल्डकप के बाद ही मुझे मेरे दोस्तों में पहले बैटिंग मिलने लग गयी क्योंकि अब बैट मेरा होता था। आज इस बैट का हत्ता टूट गया है और अब तो इसकी लकड़ी भी थोड़ी खराब सी हो गयी है लेकिन मेने इसे थोड़ा संभाला हुआ है क्योंकि ये मुझे याद दिलाता है उस वर्ल्डकप की । चाहे हम कितने भी मैच जीत गए हो , यहाँ तक कि वर्ल्डकप भी जीत गए हो लेकिन 2003 का जो दर्द है वो आज भी जहन में है ओर शायद रहेगा क्योंकि वो पहली बार था जब मैने मेरे पिताजी को किसी चीज के लिए दुःखी होते हुए देखा था। में बच्चा था ज्यादा नही समझता था ओर थोड़े दिन में भूल भी गया कि हम मैच हार गए लेकिन इतना जरूर जान गया था कि पिताजी दुःखी होते हुए अच्छे नही लगते।

 एक तरफ एक संदूक थी जिसमे मेरी ओर मेरे भाई की बहुत सारी किताबें रखी थी। बालहंस, चंपक, शक्तिमान, चाचा चौधरी, भारत को जानो, बारहखडी, 1 से 20 तक पहाड़े, सामान्य ज्ञान, स्कूल की किताबें, ओर भी बहुत कुछ था इस संदूक में जिसने मेरी आँखों मे नमी ला ही दी थी। आज मेने कुछ कहानियाँ फिर से पढ़ी तो ऐसा प्रतीत हुआ की जीवन की असली सीख तो मुझे इन कहानियों से बचपन में ही मिल गयी थी और बड़े होने के बाद मेने कोई खास बड़ी चीज नहीं सीखी जो जिन्दगी का मतलब समझाती हो, हाँ सिखा है बहुत कुछ लेकिन बस किसी का किसी चीज के पीछे भागते रहना और वो मिल जाए तो किसी और चीज के पीछे भागना शुरू कर देना |
मन ही मन मे सिर्फ इतना सा सोचता रहा कि हर साल मेरी माँ इस कमरे की सफाई करती होगी ओर परेशान भी होती होंगी लेकिन इतनी परेशानियों के बावजूद उन्होंने मेरे बचपन के उन सभी लम्हों को संभाला हुआ है जो मुझे ओर किसी चीज से नहीं मिल सकते। शायद इसलिए कहते है कि बचपन बहुत सुंदर होता है। आज सोचता हूं कि माँ बाप का दिल कितना बड़ा होता है और वो कितनी चीजें जानते है। इस भौतिकतावादी जमाने की चीजों से वो अनजान है, हाँ उन्हे नहीं पता कि flipkart पर big billion day sale लगी हैं लेकिन उन्हें इतना जरूर पता है कि असली सुख उस चीज में नहीं जो आज सोचों ओर कल तुम्हारें हाथ मे हो बल्कि असली सुख उस रोबोट में है जो मुझे उस समय इतनी जिद के बाद मिला था।

एक कमरा जिसका उपयोग किसी किरायदार को रखने में हो सकता था या फिर किसी और काम में हो सकता था, मेरे माँ पिताजी ने उसका उपयोग मेरे बचपन को जिंदा रखने में कर दिया। सोचता हूं उन लोगो के लिए जिनके माँ पिताजी मेरे माँ पिताजी की तरह ही एक 8*8 का कमरा कुर्बान कर देते है सिर्फ उनके बच्चों के बचपन को जिंदा रखने के लिए ओर बड़े होने के बाद वही लोग उनके माँ पिताजी के लिए एक 8*8 का कमरा नहीं दे पाते।

कैसा लगता होगा उन माँ बाप को उस समय????? 

बस बढ़िया यार

ओर बता यार कैसा है तू? ठीक 4 साल बाद जब उन सभी से मिला तो पहला सवाल यही था उनका कि ओर बता यार कैसा है तू? हुआ कुछ यूं था कि हम...