Wednesday, October 25, 2017

दौड़


दौड़ ये कैसी है,
ले आती है बार बार एक अनजाने मुकाम पे,
कल भी थी, आज भी है और शायद कल भी रहेगी ये दौड़ जो है, यहीं है।

दौड़ ये तेरी भी है और दौड़ ये मेरी भी है।
तेरी जो दौड़ मुझसे, मुझे हराने की है मेरी वही दौड़ तुझसे जीतने की है, पर क्या फर्क पड़ता है। है तो दौड़ ही चाहे किसी की भी हो।

कल भी तो थी ये दौड़ हां पर कल ये दौड़ मार्क्स की थी, आज ये नौकरी की है और कल ये छोकरी की होगी ओर परसों किसी ओर चीज की।

लेकिन इस दौड़ में दौड़ते दौड़ते कही ना कही हम उसे भूल गए जिसके लिए ये दौड़ हमने दौड़ना शुरू की थी।कोन था वो, क्या नाम था उसका, था एक बहुत छोटा सा, नाम था उसका "बचपन"। बड़ा मस्त था यार बचपन । ना तो किसी से जीतना जानता था और ना किसी से हारना, जानता था तो सिर्फ खेलना ओर वो भी बिना थके बिना रुके। पर अब वो मेरे घर की गली के किसी कोने में दुबका हुआ सा, सहमा हुआ सा कहीं गुम सा गया है।

जब मैं उससे दूर आया था तो कहकर आया था कि वापस आ जाऊँगा जल्दी बस थोड़े दिन की ही तो बात है। आज 10 साल हो गए लगता है जैसे कल की ही बात है लेकिन अब मैं बहुत दूर आ गया उससे, अब उसके पास जाने में डर लगता है। डर लगता है कही खो न दु उन सब चीजों को जो मेने इन 10 सालो में पाई है। कही खो न दूँ उन सबको जो मेरी तरह ही इसी डर से डरे हुए है।

"बचपन" मुझसे जब भी मिलता है सिर्फ यही कहता है की आ जाओ वापस बहुत हो गया, थोड़ा रूक जाओ, थोड़ा आराम कर लो, थोड़ा टहर जाओ। लेकिन मे उससे हमेशा से यही कहते आया हूं की बस ये चीज ओर कर लूँ फिर आऊंगा उसके बाद सिर्फ तेरे पास रहूंगा। बस थोड़ी बड़ी ओहदे वाली नॉकरी मिल जाये, एक सुंदर सी लड़की से शादी हो जाए और फेसबुक पर एक अच्छा सा स्टेटस डाल दु ताकि मेरे लाइक्स ओर मेरे फॉलोवर्स बढ़ जाये बस फिर आता हूं तेरे पास।  थोड़े पैसे और कमा लू, थोड़ा और जोड़ लू , एक गाड़ी ओर खरीद लू बस फिर आता हूं।

आज सुबह फिर मिला था , पूछ रहा था कब आओगे वापस? में कह आया, आ रहा हूं बस थोड़े दिन और,
यही कह आया हु उस बचपन से अभी अभी। आज भी वो हमेशा की तरह चुप गया वापस उसी गली की उसी कोने में कही दुबक कर, सहम कर।
" मेरा बचपन "

अब में चलता हूं। मुझे अभी दौड़ना है अभी थोडा बचा हुआ है । 

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