Sunday, October 1, 2017

8*8 का एक कमरा

मेरे घर मे एक कमरा है जो अक्सर बन्द रहता है। यही होगा कोई 8*8 का बस।

आज इतने समय बाद जब घर आया तो देखा यहाँ दिवाली की सफाई चल रही है और मम्मी ने मेरे आते ही मुझे भी काम थमा दिया। अब हर साल की तरह इस साल भी मुझे पंखे पोछने और तस्वीरों को कपड़े से साफ करने का काम मिला था लेकिन में ये  करके बोर हो चुका था तो मुझे कुछ नया करना था तो मैने उस कमरे की सफाई का काम अपने जिम्मे ले लिया। में आप सभी को बता दूँ की ये कमरा हमारे घर मे सिर्फ उन चीजों के लिए है जो अब पुरानी हो गयी है और आगे कुछ काम नही आएंगी। कुछ लोग इन सब चीजों को फेंक देते है लेकिन मेरे माँ पिताजी शायद पुरानी चीज़ो का मूल्य जानते है शायद इसलिए ये उन्हें नही फेंकते। ऐसा भी नहीं कि सब चीजें ही हम संभाल कर रख लेते है बल्कि ऐसा है कि कुछ चीजें जो माँ पिताजी को लगता है कि ये जुड़ी हुई है किसी न किसी से घर में, वो सब, हम यह रख लेते है। परन्तु मुझे इस कमरे में आये एक अरसा सा बीत गया है और यहाँ तक कि मुझे तो पता भी नही चलता कभी कभी की ये कमरा भी हमारे घर मे हैं। आप सभी के साथ भी होता होगा जैसे कोई चीज हमारे काम की नही तो हम भूल जाते है वो है और फिर एक अरसे बाद कभी भूले भटके कभी उस चीज़ से रूबरू होने का मौका मिलता है तब अतीत के पन्नो से पुरानी यादें निकल कर आ जाती है मन के मानस पटल पर और बिखेर देती है उन सभी लम्हों को आंखों के सामने जैसे कल की ही बात हो।
जैसे ही मेने इस कमरे का दरवाजा खोला तो मेरे मन के मानस पटल पर वो सारी तस्वीरे उभर आई जो कभी बचपन मे कुछ पलो में बनी थी।

एक तरफ वो रोबोट रखा हुआ था मेले में से मुझे 2 साल तक जिद करने के बाद 12 साल की उम्र में बाद मिला था। आज इसके एक हाथ और एक पैर नही है और सिर का भी एक हिस्सा गायब है लेकिन आज इसे हाथ मे लिया तो ऐसा लगा कि में भी कभी बच्चा था जो खेलना जानता था | वही बच्चा जो ऐसे रोबोट से खेलकर अपने आप को एस्ट्रोनॉट समझ लेता है और खुश रहता है। आज सोचता हूं कि ऐसे ना जाने कितने गैजेट मेरे पास है लेकिन वो ख़ुशी अब मन मे नही है। इस ओर ओर ओर की लालसा ने मुझे असली मजे से दूर कर दिया है और ला दिया है उस मोड़ पर जहा में बस थोड़ा और चाहता हूं लेकिन में सच मे नही जानता कि ये थोड़ा और कब खत्म होगा।

वहाँ दूसरी तरफ एक कार रखी थी जो मुझे मेरे 10th जन्मदिन पर मिली थी । मेरे पापा ने दी थी मुझे ये कार। इस कार की खास बात ये है कि आज इतने साल बाद भी ये कार चलती है लेकिन अब इसका रिमोट गुम हो गया है और मुझे इसे खुदके हाथो से ही चलाना पड़ता है। है शायद दुनिया का यही उसूल है जो पुराना हो जाता है उसे किसी के सहारे की जरूरत पड़ती है। सहारा कैसा भी क्यों न हो लेकिन जरूरत तो पड़ ही जाती है , चीजे पुरानी हो इसका मतलब ये तो नहीं की उन्हें फेंक दिया जाए या छोड़ दिया जाए उनके खुदके भरोसे ही। में कैसे छोड़ दू उस कार को जो आज मेरे सहारे नही चल पा रही लेकिन कभी इसी कार के सहारे में पूरी छत पर दौड़ लगाता था ओर जीत जाता था वो सारी रेस जो जो मेने खुदने ही बनाई थी। आज मेरे पास बाइक है लेकिन सच बताऊ तो में कोई रेस जीत ही नही पा रहा क्योंकि हर बार जीतने के बाद मेरी मंजिल बदल जाती है।

एक कोने में क्रिकेट का वो बैट रखा हुआ था जो मेरे पिताजी 2003 के वर्ल्डकप में लाये थे। मेरी तरह ही मेरे पिताजी भी क्रिकेट के दिवाने हैं शायद इसलिए उस समय ये बैट मुझे मिला था और 2003 के वर्ल्डकप के बाद ही मुझे मेरे दोस्तों में पहले बैटिंग मिलने लग गयी क्योंकि अब बैट मेरा होता था। आज इस बैट का हत्ता टूट गया है और अब तो इसकी लकड़ी भी थोड़ी खराब सी हो गयी है लेकिन मेने इसे थोड़ा संभाला हुआ है क्योंकि ये मुझे याद दिलाता है उस वर्ल्डकप की । चाहे हम कितने भी मैच जीत गए हो , यहाँ तक कि वर्ल्डकप भी जीत गए हो लेकिन 2003 का जो दर्द है वो आज भी जहन में है ओर शायद रहेगा क्योंकि वो पहली बार था जब मैने मेरे पिताजी को किसी चीज के लिए दुःखी होते हुए देखा था। में बच्चा था ज्यादा नही समझता था ओर थोड़े दिन में भूल भी गया कि हम मैच हार गए लेकिन इतना जरूर जान गया था कि पिताजी दुःखी होते हुए अच्छे नही लगते।

 एक तरफ एक संदूक थी जिसमे मेरी ओर मेरे भाई की बहुत सारी किताबें रखी थी। बालहंस, चंपक, शक्तिमान, चाचा चौधरी, भारत को जानो, बारहखडी, 1 से 20 तक पहाड़े, सामान्य ज्ञान, स्कूल की किताबें, ओर भी बहुत कुछ था इस संदूक में जिसने मेरी आँखों मे नमी ला ही दी थी। आज मेने कुछ कहानियाँ फिर से पढ़ी तो ऐसा प्रतीत हुआ की जीवन की असली सीख तो मुझे इन कहानियों से बचपन में ही मिल गयी थी और बड़े होने के बाद मेने कोई खास बड़ी चीज नहीं सीखी जो जिन्दगी का मतलब समझाती हो, हाँ सिखा है बहुत कुछ लेकिन बस किसी का किसी चीज के पीछे भागते रहना और वो मिल जाए तो किसी और चीज के पीछे भागना शुरू कर देना |
मन ही मन मे सिर्फ इतना सा सोचता रहा कि हर साल मेरी माँ इस कमरे की सफाई करती होगी ओर परेशान भी होती होंगी लेकिन इतनी परेशानियों के बावजूद उन्होंने मेरे बचपन के उन सभी लम्हों को संभाला हुआ है जो मुझे ओर किसी चीज से नहीं मिल सकते। शायद इसलिए कहते है कि बचपन बहुत सुंदर होता है। आज सोचता हूं कि माँ बाप का दिल कितना बड़ा होता है और वो कितनी चीजें जानते है। इस भौतिकतावादी जमाने की चीजों से वो अनजान है, हाँ उन्हे नहीं पता कि flipkart पर big billion day sale लगी हैं लेकिन उन्हें इतना जरूर पता है कि असली सुख उस चीज में नहीं जो आज सोचों ओर कल तुम्हारें हाथ मे हो बल्कि असली सुख उस रोबोट में है जो मुझे उस समय इतनी जिद के बाद मिला था।

एक कमरा जिसका उपयोग किसी किरायदार को रखने में हो सकता था या फिर किसी और काम में हो सकता था, मेरे माँ पिताजी ने उसका उपयोग मेरे बचपन को जिंदा रखने में कर दिया। सोचता हूं उन लोगो के लिए जिनके माँ पिताजी मेरे माँ पिताजी की तरह ही एक 8*8 का कमरा कुर्बान कर देते है सिर्फ उनके बच्चों के बचपन को जिंदा रखने के लिए ओर बड़े होने के बाद वही लोग उनके माँ पिताजी के लिए एक 8*8 का कमरा नहीं दे पाते।

कैसा लगता होगा उन माँ बाप को उस समय????? 

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